शिक्षित, समृद्ध, स्वस्थ, सजग और सुन्दर। हर परिवार हर नगर!! की अवधारणा पर काम करने के लिए आज से लगभग 36 वर्ष पहले (1985-86) चेतना नगर, मौरा -झहूरा (प्रखण्ड – निर्मली, जिला – सुपौल बिहार) में डाँ॰ दुर्गा विश्वास की संकल्पना एवं प्रेरणा से प्रकाश मणि विश्वास द्वारा स्वास्थ्य-आनन्द-ज्ञान मदिर की स्थापना की गई। संस्था का उद्घाटन स्वयं डा० विश्वास द्वारा कराया गया था एवं इसके माध्यम से कई दशकों तक कोशी क्षेत्र में लगातार रचनात्मक एवं कई उल्लेखनीय कार्य किया गया।
स्वास्थ्य-आनन्द-ज्ञान मंदिर पूर्व से संस्थापित अपनी आनुषंगी संस्था नव चेतना समिति, चेतनानगर, मौरा-झहूरा, थाना-निर्मली, जिला-सुपौल (बिहार) के साथ मिलकर (1980 में स्थापित) बिना किसी सरकारी या संस्थागत सहायता के दशकों तक ग्रामीण स्तर पर प्राथमिक चिकित्सा, पुस्तकालय, दैनिक समाचार-पत्र, बच्चों, महिलाओं एवं प्रतियोगी परीक्षाओं, (प्रत्येक के लिए अलग-अलग) हेतु उपयोगी तथा ज्ञानवर्द्धक पत्रिकाओं एवं पुस्तकों का नियमित रूप से प्रबन्ध किया जाता रहा।
स्थापना काल से ही संस्था द्वारा प्रत्येक वर्ष सरस्वती पूजा (बंसत पंचमी) के अवसर पर मूर्ति पूजा के बदले ” संकल्प दिवस समारोह ” आयोजित करने की परम्परा प्रारम्भ की गई। इससे संबंधित कार्यक्रम 15-30 दिन पूर्व से ही प्रारम्भ हो जाता था। इसमें कक्षा- 3 से 10 तक के छात्र-छात्राओं को 4-5 ग्रूपों में बाँट कर प्रत्येक के लिए अलग-अलग क्वीज कन्टेस्ट, लेखमाला, भाषणमाला, के साथ-साथ विभिन्न खेल-कुद, गीत-संगीत, एकांकी,न ुक्कड़ नाटक अदि का आयोजन कर प्रत्येक ग्रूप के लिए, अलग-अलग आयोजनों के आधार पर 3 से 5 एवं कभी-कभी इससे भी अधिक छात्र-छात्राओं का चयन किया जाता था। संकल्प दिवस के अवसर पर आयोजित सामूहिक संकल्प समारोह (परिवार एवं समाज को पढ़ने-पढ़ाने का संकल्प), एवं विचार-गोष्ठी के पशचात् क्षेत्र के गणमान्य व्यक्तियों, मध्य विद्यालय / उच्च विद्यालय के प्रधानाध्यापकों, प्रखण्ड स्तर के पदाधिकारी से लेकर जिला पदाधिकारी ,स्थानीय विधायक आदि के हाथों पुरस्कार का विवरण किया जाता रहा।
संस्था द्वारा उस समय समाज में व्याप्त अंधविश्वास, रूदीवाद, पाखंड आदि के खिलाफ किया गया अभियान काफी सफल रहा और ओझा-गुणी, डायन, भूत-प्रेत, पिचाश, शकुन-अपशकुन, ग्रहों का फेरा आदि के प्रभाव एवं भय से आसपास के गांवों को मुक्ति मिली। ऐसे दकियानूशी सोच एवं अवैज्ञानिक भ्रम-जाल को समाप्त करने हेतु विभिन्न माध्यमों से चलाये गये अभियान का ऐसा असर हुआ कि कई गाँवों की महिलाओं पर भूत, प्रेत, देवी, शैतान, जिन्नात का साया आना बन्द हो गया तथा ओझाओं को या तो अपना धंधा बन्द करना पड़ा या वे इलाके को छोड़ दूसरे जिले चले गये।
संस्था अपने स्थापना काल से ही कई सामाजिक एवं रचनात्मक कार्यों में संलग्न रही, जिसमें कुछ उल्लेखनीय कार्य निम्न हैं –
- झहूरा के पश्चिमी भाग से लगुनियाँ के पूरब तक श्रमदान द्वारा बाँध का निर्माण, जिससे बड़ी आबादी को बाढ़ एवं फसल बर्वादी से मुक्ति मिली।
- कोशी नदी से निकलनेवाली एक धारा, जो झहूरा-मौरा के बीच से बहते हुए बोचहा धार में मिलती थी, को श्रमदान द्वारा बाँस-बल्ले एवं मिटटी से बाँधना, जिससे कई घरों के विस्थापन एवं हजारों एकड़ फसल की बर्बादी रूकी।
- सरकारी जमीन में बने प्राथमिक विद्यालय झहुरा को कोशी नदी में विलीन होने के पूर्व, उसे सुरक्षित स्थान पर ले जाकर ग्रामीणों के सहयोग से जमीन एवं घर का निर्माण कर 15 दिन के अन्दर पठन-पाठन प्रारंभ कराना।
- पहली कक्षा से दसवीं कक्षा तक के छात्र -धात्राओं को निःशुल्क पढ़ाना।
- प्रत्येक दिपावली के पूर्व ग्रामीण सड़कों को अतिक्रमण से मुक्त कर उनकी साफ-सफाई एवं मरम्मति।
इसके अतिरिक्त संस्था, सामाजिक सौहार्द बनाये रखने, परिवार के विखंडन को रोकने एवं आस-पास के गाँवो के शैक्षिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिदृश्य को बेहतर बनाने में काफ़ी सफल रही। हालांकि विगत एक दशक से कोशी की विभिषिका एवं बड़े भू-भाग के विस्थापित हो जानी के कारण संस्था का संचालन एवं उसका कार्यकलाप बुरी तरह प्रभावित रहा। परन्तु अब फिर से अपनी गौरवशाली परम्परा एवं अनुभवों के बल पर विभिन्न कार्यक्रमों तथा गतिविधियों को दुहराना ही नहीं बल्किं व्यवस्थित होकर मजबूती के साथ कदम बढ़ाने हेतु कृत संकल्पित है।